गुरुवार, 26 फ़रवरी 2009

पहल करने वालों में ''प्रथम'' थे सावरकर


स्वातंत्र्यवीर विनायक दामोदर सावरकर की पुण्य तिथि पर विशेष - २६ फरवरी १९६६
अप्रितम क्रांतिकारी, दृढ राजनेता, समर्पित समाज सुधारक, दार्शनिक, द्रष्टा, महान कवि और महान इतिहासकार आदि अनेकोनेक गुणों के धनी वीर सावरकर हमेशा नये कामों में पहल करते थे। उनके इस गुण ने उन्हें महानतम लोगों की श्रेणी में उच्च पायदान पर लाकर खड़ा कर दिया। वीर सावरकर के नाम के साथ इतने प्रथम जुडे हैं इन्हें नये कामों का पुरोधा कहना कुछ गलत न होगा। सावरकर ऐसे महानतम हुतात्मा थी जिसने भारतवासियों के लिए सदैव नई मिशाल कायम की, लोगों की अगुवाई करते हुए उनके लिए नये मार्गों की खोज की। कई ऐसे काम किये जो उस समय के शीर्ष भारतीय राजनीतिक, सामाजिक और क्रांतिकारी लोग नहीं सोच पाये थे।

वीर सावरकर द्वारा किये गए कुछ प्रमुख कार्य जो किसी भी भारतीय द्वारा प्रथम बार किए गए -
वे प्रथम नागरिक थे जिसने ब्रिटिश साम्राज्य के केन्द्र लंदन में उसके विरूद्ध क्रांतिकारी आंदोलन संगठितकिया।
वे पहले भारतीय थे जिसने सन् 1906 में 'स्वदेशी' का नारा दे, विदेशी कपड़ों की होली जलाई थी।
सावरकर पहले भारतीय थे जिन्हें अपने विचारों के कारण बैरिस्टर की डिग्री खोनी पड़ी।
वे पहले भारतीय थे जिन्होंने पूर्ण स्वतंत्रता की मांग की।
वे पहले भारतीय थे जिन्होंने सन् 1857 की लड़ाई को भारत का 'स्वाधीनता संग्राम' बताते हुए लगभग एकहजार पृष्ठों का इतिहास 1907 में लिखा।
वे पहले और दुनिया के एकमात्र लेखक थे जिनकी किताब को प्रकाशित होने के पहले ही ब्रिटिश और ब्रिटिशसाम्राज्यकी सरकारों ने प्रतिबंधित कर दिया।
वे दुनिया के पहले राजनीतिक कैदी थे, जिनका मामला हेग के अंतराष्ट्रीय न्यायालय में चला था।
वे पहले भारतीय राजनीतिक कैदी थे, जिसने एक अछूत को मंदिर का पुजारी बनाया था।
सावरकर ने ही वह पहला भारतीय झंडा बनाया था, जिसे जर्मनी में 1907 की अंतर्राष्ट्रीय सोशलिस्ट कंाग्रेस मेंमैडम कामा ने फहराया था।
सावरकर ही वे पहले कवि थे, जिसने कलम-कागज के बिना जेल की दीवारों पर पत्थर के टुकड़ों से कवितायेंलिखीं। कहा जाता है उन्होंने अपनी रची दस हजार से भी अधिक पंक्तियों को प्राचीन वैदिक साधना के अनुरूप वर्षोंस्मृति में सुरक्षित रखा, जब तक वह किसी किसी तरह देशवासियों तक नहीं पहुच गई।
सन् 1947 में विभाजन के बाद आज भारत का जो मानचित्र है, उसके लिए भी हम सावरकर के ऋणी हैं। जबकांग्रेस ने मुस्लिम लीग के 'डायरेक्ट एक्शन' और बेहिसाब हिंसा से घबराकर देश का विभाजन स्वीकार कर लिया, तो पहली ब्रिटिश योजना के अनुसार पूरा पंजाब और पूरा बंगाल पाकिस्तान में जाने वाला था - क्योंकि उन प्रांतोंमें मुस्लिम बहुमत था। तब सावरकर ने अभियान चलाया कि इन प्रांतो के भारत से लगने वाले हिंदू बहुल इलाकोंको भारत में रहना चाहिए। लार्ड मांउटबेटन को इसका औचित्य मानना पड़ा। तब जाकर पंजाब और बंगाल कोविभाजित किया गया। आज यदि कलकत्ता और अमृतसर भारत में हैं तो इसका श्रेय वीर सावरकर को ही जाता है
भारत की स्वतंत्रता के लिए किए गए संघर्षों के इतिहास में वीर सावरकर का नाम बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान रखताहै। वीर सावरकर का पूरा नाम विनायक दामोदर सावरकर था। महान देशभक्त और क्रांतिकारी सावरकर ने अपनासंपूर्ण जीवन देश की सेवा में समर्पित कर दिया। अपने राष्ट्रवादी विचारों के कारण जहाँ सावरकर देश को स्वतंत्रकराने के लिए निरन्तर संघर्ष करते रहे, वहीं देश की स्वतंत्रता के बाद भी उनका जीवन संघर्षों से घिरा रहा।
ऐसे महान व्यक्तित्व को हमारा सादन नमन।


सोमवार, 23 फ़रवरी 2009

क्या आप जानते हैं ?


1. अंको का आविष्कार भारत में ३०० .पू. हुआ था।
2. शून्य का आविष्कार भारत में ब्रह्यगुप्त ने किया था।
3. अंक गणित का आविष्कार 200 .पू. भास्करार्चाय ने किया था।
4. बीज गणित का आविष्कार भारत में आर्यभट्ट ने किया था।
5. सर्वप्रथम ग्रहों की गणना आर्यभट्ट ने 499 .पू. की थी।
6. मोहन जोदड़ो और हडप्पा में मिले अवषेशों के अनुसार भारतीयों को त्रिकोणमिती और रेखागणित का ज्ञान.पू. था।
7. जर्मन लेखक थामस के अनुसार सिंधु घाटी सभ्यता में मिले भार मापक यंत्र भारतीयों के दशमलव प्रणाली केज्ञान को दर्शाते हैं।
8. समय और काल की गणना करने वाला विश्व का पहला कलेण्डर भारत में लता देव ने 505 .पू. सूर्य सिद्धांतनामक अपनी पुस्तक में वर्णित किया है।
9. विश्व में सबसे पहले चरक ने 2500 वर्ष पूर्व औषध विज्ञान को आयुर्वेद के रूप में संकलित किया।
10. लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड के अनुसार 400 .पू. सुश्रुत ने सर्वप्रथम प्लास्टिक सर्जरी का प्रयोग किया।
11. विश्व के पहले लेखन कार्य का प्रमाण 5500 वर्ष पूर्व हडप्पा सभ्यता के अंतर्गत मिलता है।
12. विश्व का पहला विश्वविद्यालय तक्षशिला के रूप में 700 .पू. भारत में स्थापित हुआ। जहां दुनिया भर केविद्यार्थी लगभग 60 विषयों का अध्ययन करते थे।
13. पाइथागोरस प्रमेय की खोज बोधायन ने की थी लेकिन आज भी उसे पाइथागोरस प्रमेय के नाम से जाना जाताहै।
इतना ही नहीं और भी कई बातें हैं जिनसे हम-तुम सब अनजान हैं। जागो अपने अस्तित्व को पहचानों और अपने ज्ञान को ढूंढो वह यहां-वहां बिखरा पड़ा है। जरूरत है उसे समेटने की। अगर आपके पास भी ऐसी कोई जानकारी है या मिलती है तो उसका प्रसार करें। साथ ही मुझे मेरे ईमेल -rajpoot1983lokendra@gmail.com पर भेजने काकष्ट करें। जय भारत - जय भारत की प्रखर संतान।

शनिवार, 21 फ़रवरी 2009

मैकाले की सोच का एक नमूना




यही मैकाले महाशय हमारी शिक्षा पद्धति को बदलने..... अरे नहीं ठीक करने के लिए आये थे.....
सोच लो इन महाशय ने क्या ठीक किया होगा और कैसे ठीक किया होगा?

बुधवार, 11 फ़रवरी 2009

अजात शत्रु थे पं. दीनदयाल उपाध्याय


११ फरवरी, पुण्य तिथि
पंडित दीनदयालजी उपाध्याय
कहा जाता है कुछ लोग महान पैदा होते है, कुछ लोग महानता अर्जित करते है और कुछ पर महानता थोप दी जाती है पंडित दीनदयाल उपाध्याय ऐसे महापुरुष है जिन्होंने महानता अर्जित की थी दीनदयालजी का जन्म एक साधारण परिवार मै २४ सितम्बर १९१६ को जयपुर अजमेर लें पर स्थित धनाकिया गाँव मै हुआ था जंहा उनके नाना चुन्नीलाल स्टेशन मास्टर के रूप मै कार्य कर रहे थे दीनदयाल के पिता भगवती प्रसाद मथुरा जिले के नगला चंद्रभान ग्राम के निवासी थे जब दीनदयाल की आयु वर्ष की हुई होगी उनके सर से पिता का साया उठ गया इसके साथ वे अपनी मा के साथ नाना के यहाँ गए दीनदयाल आठ वर्ष के भी हो पाये होंगे कि तभी उनकी माँ ने भी उनका साथ छोड़ दिया इसके बाद उनका लालन पालन उनके मामा राधारमन शुक्ल ने किया, जो फ्रंटियर मेल पर रेलवे गार्ड थे.
दीनदयालजी बचपन से ही कुसाग्र बुद्धि के बालक थे उन्होंने कल्याण हाई स्कूल सीकर से मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की और अजमेर बोर्ड की उस परीक्षा मै उन्हें प्रथम श्रेणी में सर्व प्रथम स्थान प्राप्त हुआ. उन्हें बोर्ड और स्कूल दोनों की तरफ से एक एक स्वर्ण पदक प्रदान किये गए. दो वर्ष बाद बिड़ला कॉलेज पिलानी से हायर सेकंड्री परीक्षा मै भी वे प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण हुए, और इस बार भी वे प्रथम रहे. फिर से उन्हा दो स्वर्ण पदक मिले. एक बोर्ड की और से ओर दूसरा कॉलेज की ओर से. उन्होंने सनातन धर्म कॉलेज, कानपुर से गणित विषय से बी.ए. की परीक्षा प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण की. पंडितजी ने आगरा के सेंटजॉन्स कॉलेज मै एम. ए. के लिए दाखिला लिया परन्तु किन्ही कारण पडी बीच मै ही छोड़ प्रयाग चले गए जहाँ से उन्होंने एल. टी. किया.
पढाई पूरी कर लेने के साथ ही उन्होंने कोई नौकरी न करने का निश्चय किया. उसके स्थान पर उन्होंने राष्ट्रिय जाग्रति एंव राष्ट्रिय एकता के राष्ट्रिय स्वयं सेवक संघ के कार्य के लिए अपना जीवन अर्पित कर दिया. १९५१ तक वे संघ के विभिन्न पदों पर रहकर समाज चेतना का कार्य करते रहे. १९५१ में जनसंघ की स्थापना हुई तब से उन्होंने अपनी सेवाए जनसंघ को अर्पित कर दी. डॉक्टर मुखर्जी उनकी संगठन क्षमता से इतने अधिक प्रभावित हुए की कानपूर अधिवेशन के बाद उनके मुह से यही उदगार निकले कि ''यदि मेरे पास ओर दो दीनदयाल होते तो मै भारत का राजनितिक रूप बदल देता '' दुर्भाग्य से १९५३ मै डॉक्टर मुखर्जी की मृत्यु होगी और भारत के राजनितिक रूप को बदल देने का दायित्य स्वयं पंडित दीनदयाल के कंधो पर आ पड़ा. उन्होंने इस कार्य को इतने चुपचाप और विशेष ढंग से पूरा किया कि जब १९६७ के आम चुनावों के परिणाम सामने आने लगे तब देश आश्चर्यचकित रह गया. जनसंघ राजनीतिक दलों में दूसरे क्रमांक पर पंहुच गया. यद्यपि दीनदयालजी महान नेता बन गए थे परन्तु वे अपने कपडे स्वयं ही साफ़ करते थे. स्वभाव से इतने सरल थे कि जब तक उनकी बनियान कि चिद्दी चिद्दी नहीं उड़ जाती थी वे नई बनियान बनबाने के लिए तैयार नहीं होते थे. वे 'स्वदेशी' के बारे मै शोर तो नहीं मचाते थे परन्तु वे कभी भी विदेशी वास्तु नहीं खरीदते थे.
दीनदयालजी बचपन से ही कुसाग्र बुद्धि के बालक थे उन्होंने कल्याण हाई स्कूल सीकर से मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की और अजमेर बोर्ड की उस परीक्षा मै उन्हें प्रथम श्रेणी में सर्व प्रथम स्थान प्राप्त हुआ. उन्हें बोर्ड और स्कूल दोनों की तरफ से एक एक स्वर्ण पदक प्रदान किये गए. दो वर्ष बाद बिड़ला कॉलेज पिलानी से हायर सेकंड्री परीक्षा मै भी वे प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण हुए, और इस बार भी वे प्रथम रहे. फिर से उन्हा दो स्वर्ण पदक मिले. एक बोर्ड की और से ओर दूसरा कॉलेज की ओर से. उन्होंने सनातन धर्म कॉलेज, कानपुर से गणित विषय से बी.ए. की परीक्षा प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण की. पंडितजी ने आगरा के सेंटजॉन्स कॉलेज मै एम. ए. के लिए दाखिला लिया परन्तु किन्ही कारण पडी बीच मै ही छोड़ प्रयाग चले गए जहाँ से उन्होंने एल. टी. किया.
पडी पूरी कर लेने के साथ ही उन्होंने कोई नौकरी न करने का निश्चय किया. उसके स्थान पर उन्होंने राष्ट्रिय जाग्रति एंव राष्ट्रिय एकता के राष्ट्रिय स्वयं सेवक संघ के कार्य के लिए अपना जीवन अर्पित कर दिया. १९५१ तक वे संघ के विभिन्न पदों पर रहकर समाज चेतना का कार्य करते रहे. १९५१ में जनसंघ की स्थापना हुई तब से उन्होंने अपनी सेवाए जनसंघ को अर्पित कर दी. डॉक्टर मुखर्जी उनकी संगठन क्षमता से इतने अधिक प्रभावित हुए की कानपूर अधिवेशन के बाद उनके मुह से यही उदगार निकले कि ''यदि मेरे पास ओर दो दीनदयाल होते तो मै भारत का राजनितिक रूप बदल देता '' दुर्भाग्य से १९५३ मै डॉक्टर मुखर्जी की मृत्यु होगी और भारत के राजनितिक रूप को बदल देने का दायित्य स्वयं पंडित दीनदयाल के कंधो पर आ पड़ा. उन्होंने इस कार्य को इतने चुपचाप और विशेष ढंग से पूरा किया कि जब १९६७ के आम चुनावों के परिणाम सामने आने लगे तब देश आश्चर्यचकित रह गया. जनसंघ राजनीतिक दलों में दूसरे क्रमांक पर पंहुच गया. यद्यपि दीनदयालजी महान नेता बन गए थे परन्तु वे अपने कपडे स्वयं ही साफ़ करते थे. स्वभाव से इतने सरल थे कि जब तक
वे एक उच्च कोटि के पत्रकार भी थे. लखनऊ से प्रकाशित "पांचजन्य" साप्ताहिक और "स्वेदश" दैनिक के संपादक क रूप में वे न केवल इन पत्रों का संपादन करते थे, मशीन भी चला लेते थे और "वाइन्डर" तथा " डिस्पेचर " का कार्य भी कर लेते थे १९४०-४८ के बीच उन्होंने एक ही बार में १६ घंटे बैठकर " चन्द्र गुप्त मौर्य " नामक लघु उपन्यास भी लिख डाला
एक- एक कार्यकर्ता का निर्माण कर एक राज्य से दूसरे राज्य में उन्होंने जनसंघ का विस्तार किया श्री अटल विहारी के शव्दों में - ' वे स्वयं तो सनद सदस्य नहीं थे परन्तु वे जनसंघ के सभी संसद सदस्यों के निर्माता थे उनकी एकात्म मानवबाद कि ब्याख्या अदभुत थी ११ फरवरी -१९६८ को इस महँ आत्मा कि रहस्य पूर्ण परिस्थितियों में हत्या हो गयी
दीनदयाल जी के बारें में इनका कहना है -
-> भारत के गृहमंत्री श्री चौहान ने उनको एक आदर्श भारतीय कहकर श्रधांजलि दी
-> राष्ट्रीय स्वयमसेवक संघ के तत्कालीन सर कर्यबाह श्री बाला साहेब देवरस ने उन्हें ' एक आदर्श' स्वयं सेवक बताया और डा. हेडगेवार के साथ उनकी तुलना की
-> श्री नाथ पै ने उनको गाँधी, तिलक ओर बोस कि राष्ट्रीय परंपरा का पुरुष कहा
-> श्री हीरेन मुखर्जी ने उन्हें अजात शत्रु कि संज्ञा दी
-> आचार्य कृपलानी ने " देवीय गुण संपन्न व्यक्ति" के विशलेषण के साथ उनका वर्णन किया

ऐसे महान विभूति को मेरा शत्-शत् नमन

शनिवार, 7 फ़रवरी 2009

गीता को राष्ट्रिय ग्रन्थ घोषित करें



श्रीमद भगवद गीता को भारत का राष्ट्रिय ग्रन्थ घोषित करने के लिए 'विश्व गीता प्रतिष्ठानम द्वारा आयोजित देश- प्रदेश के विभिन्न स्वाध्याय मंडल के सदस्यों द्वारा राष्ट्रिय स्तर पर यह अभियान चलाया जा रहा है। इसी के तहत ०६ फ़रवरी को 'विश्व गीता प्रतिष्ठानम ग्वालियर के मंत्री राकेश कुमार सिंह चौहान और उपाध्यक्ष संयोजक इश्वरदयाल शर्मा के नेतृत्व में श्रीमद्भागवत गीता को राष्ट्रिय ग्रन्थ घोषित करने के लिए राष्ट्रपति के नाम संबोधित ज्ञापन ग्वालियर के कलेक्टर को सौंपा। जिसमे कहा गया है कि गीता विश्व बंधुत्व को प्रचारित करने वाला सभी धर्मों से परे एक श्रेष्ठ दार्शनिक ग्रन्थ है। जिसमें ज्ञान-विज्ञानं और अध्यात्म कि लोक मंगलकारी भावना कि अभिव्यक्ति प्रकाशित हुई है।

विश्व की नज़र में श्रीमाद्भागवाद गीता ----
अल्बर्ट आइन्स्टाइन-
जब मैंने गीता पढ़ी और विचार किया कि कैसे इश्वर ने इस ब्रह्माण्ड कि रचना की है, तो मुझे बाकी सब कुछ व्यर्थ प्रतीत हुआ।

अल्बर्ट श्वाइत्जर -
भगवत गीता का मानवता कि आत्मा पर गहन प्रभाव है, जो इसके कार्यों में झलकता है।

अल्ड्स हक्सले -
भगवत गीता ने सम्रद्ध आध्यात्मिक विकास का सबसे सुवयाव्स्थित बयान दिया है। यह आज तक के सबसे शाश्वत दर्शन का सबसे स्पष्ट और बोधगम्य सार है, इसलिए इसका मूल्य केवल भारत के लिए नही, वरन संपूर्ण मानवता के लिए है।

हेनरी डी थोरो -
हर सुबह मैं अपने ह्रदय और मस्तिष्क को भगवद गीता के उस अद्भुत और देवी दर्शन से स्नान कराता हूँ, जिसकी तुलना में हमारा आधुनिक विश्व और इसका साहित्य बहुत छोटा और तुच्छ जान पड़ता है।

हर्मन हेस -
भगवत गीता का अनूठापन जीवन के विवेक की उस सचमुच सुंदर अभिव्यक्ति में है, जिससे दर्शन प्रस्फुटित होकर धर्म में बदल जाता है।

रौल्फ वाल्डो इमर्सन -
मैं भागवत गीता का आभारी हूँ। मेरे लिए यह सभी पुस्तकों में प्रथम थी, जिसमे कुछ भी छोटा या अनुपयुक्त नहीं किंतु विशाल, शांत, सुसंगत, एक प्राचीन मेधा की आवाज जिसने एक - दूसरे युग और वातावरण में विचार किया था और इस प्रकार उन्हीं प्रश्नों को तय किया था, जो हमें उलझाते हैं।


थॉमस मर्टन-

गीता को विश्व की सबसे प्राचीन जीवित संस्कृति, भारत की महान धार्मिक सभ्यता के प्रमुख साहित्यिक प्रमाण के रूप में देखा जा सकता है।


डा. गेद्दीज़ मैकग्रेगर -

पाश्चात्य जगत में भारतीय साहित्य का कोई भी ग्रन्थ इतना अधिक उद्धरित नहीं होता जितना की भगवद गीता, क्योंकि यही सर्वाधिक प्रिय है.

भारत के महापुरुषों ने भी समय- समय पर गीता के सम्बन्ध में अपने विचार दिए है. इस ग्रन्थ के सम्बन्ध में आपके क्या विचार हैं........








शुक्रवार, 6 फ़रवरी 2009

मैंने भारत को करीब से देखा है




मैंने भारत को करीब से देखा है
बहुत करीब से देखा है.
रोटी के लिए बिलखते भी देखा है
किन्तु स्वाभिमान के साथ जीते देखा है
मानवता उसकी रग-रग में है
स्वंम कष्ट में होते हुए भी दूसरों के ज़ख्मों को सीते देखा है, दर्द समेटते देखा है. ०१

विश्व मार्गदर्शक के रूप में स्वर्णिम इतिहास देखा है
तो संघर्षमय, पीढा, वेदना से भरा प्रष्ट भी देखा है
पाश्चात्य संस्कृति के दलदल में फंसा ही सही
किन्तु अब इससे उभरता हुआ अपनी जड़ों में लौटते देखा है, परम वैभव कि ओर बढ़ते देखा है। ०२

शस्य-श्यामल भाल आतंक में लहू-लुहान देखा है
आँचल में भी अलगाव का दर्द देखा है
भाषा-जाति-धर्म को लेकर लड़ते ही सही
किन्तु राष्ट्रिय एकता-अखंडता के लिए
साथ-साथ चलते देखा है, राष्ट्र चेतना का नव सृजन करते देखा है। ०३

शान्ति उपवन का निर्माण करते देखा है
विश्व कल्याणी कार्य में संलग्न देखा है
पंचशील के सिध्यांत का संस्थापक ही सही
किन्तु स्व-अस्तित्व पर उठे संकट कोई
तो सिंह से दहाड़ते देखा है, शत्रु का मर्दन करते देखा है। ०४

आतंक, नक्शलवाद से जूझते देखा है
स्वसंतान के कारण उठे प्रश्नों में उलझते देखा है
फिर भी हर क्षण उसकी आँखों में चमक
समर्थ विश्वगुरु बनने का
सशक्त स्वप्न देखा है, प्रशस्त कर्मपथ देखा है. ०५








मंगलवार, 3 फ़रवरी 2009

दिल दुखता है.


दिल दुखता है... जब अपने ही देश के लोगों से देश की बुराई सुनता हूँ।
दिल दुखता है... जब चालाक लोगों की बातों में समाज के भोले-भाले लोगों को फंसते देखता हूँ।
दिल दुखता है... जब चोरो को उपदेश देते सुनता हूँ।
दिल दुखता है... जब बच्चों का बचपन छिनते देखता हूँ
दिल दुखता है... जब राह चलती किसी लड़की को कोई सीटी मारता है या रास्ता रोकता है.
दिल दुखता है... जब कोई झूठ बोलता है और कहता है - trust me।
दिल दुखता है... जब कोई नवजात सुबह-सुबह घूरे पर पड़ा मिलता है.
दिल दुखता है... जब देखता हूँ इस देश के नेता अपने से अधिक उम्र के लोगों से पैर छुलवाते है.
दिल दुखता है... जब लालची वोटर लालची नेता को चुनते हैं और हम चद्दर तान के सोते हैं.
दिल दुखता है... जब देश आतंक में जलता है और हमारे चूल्हे की आग पर मटर पनीर पकता है.
दिल दुखता है... जब भारतीय त्योहारों पर विदेशी त्यौहार भारी पड़ते हैं.
दिल दुखता है... जब लोगों के मुंह से सुनता हूँ इस देश ने हमको क्या दिया है?
दिल दुखता है...